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कुछ मैं अज़ीब हूँ ,  

कुछ तुम  अजीब हो ,

 ऐसे ही हम सब सजीब है  …...

 

सबके होठों पर है हँसी ,

सबकी आँखों में है नमी ,

एक दिल है जिसमें हौसलों की ना कमी …...

 

गिरते -  उठते , लड़खड़ाते - चलते ,

फिर भी यह पैर ना रुकते हारते ……..

 

कभी हम गिरे ,

कभी तुम गिरो ,

कभी हम सँभाले ,

कभी तुम सँभालो,

 सफर के यह किस्से वाजिब है…….. 

 

अंत जो है मेरा ,

अंत वही है तुम्हारा ,

सब का हिसाब रखने वाला ,

एक जिसका ना कोई आदि ना अंत निराला ,

है वह अलबेला ऊपर बैठा नीली छतरी वाला ….

 

 इंदु साहा

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