top of page
कुछ मैं अज़ीब हूँ ,
कुछ तुम अजीब हो ,
ऐसे ही हम सब सजीब है …...
सबके होठों पर है हँसी ,
सबकी आँखों में है नमी ,
एक दिल है जिसमें हौसलों की ना कमी …...
गिरते - उठते , लड़खड़ाते - चलते ,
फिर भी यह पैर ना रुकते हारते ……..
कभी हम गिरे ,
कभी तुम गिरो ,
कभी हम सँभाले ,
कभी तुम सँभालो,
सफर के यह किस्से वाजिब है……..
अंत जो है मेरा ,
अंत वही है तुम्हारा ,
सब का हिसाब रखने वाला ,
एक जिसका ना कोई आदि ना अंत निराला ,
है वह अलबेला ऊपर बैठा नीली छतरी वाला ….
इंदु साहा
bottom of page